जब मरना इतना अवश्यं भावि है तो मरने से डरना क्यों ? डरने से मौत नहीं मिटती। दूसरी बार मौत न हो इसका यत्न करना चाहिए।
अनेक बार मौत क्यों होती है ? वासना से मौत होती है। वासना क्यों होती है ? वासना सुख के लिए होती है। अगर आत्मा-परमात्मा का सुख मिल गया तो वासना आत्मा-परमात्मा में लीन हो जायेगी। परमात्मा अमर है। वासना अगर परमात्म-सुख से तृप्त नहीं हुई तो देखने की वासना खाने की वासना, सूँघने की वासना, सुनने की वासना और स्पर्श की वासना बनी रहेगी। पाँच ही तो विषय हैं और जिनको पाँच विषय का सुख दिलाते हो उनको तो जला देना है।
योगी इस बात को जानते हैं इसलिए वे अंतर आराम, अंतर सुख, अंतर ज्योत की ओर जाते हैं। भोगी इस बात को नहीं जानता, नहीं मानता इसलिए बाहर भटकता है।
भगवान कहते हैं-
संतुष्टः सततं योगी यतात्मा दृढ़निश्चयः।
मय्यर्पितमनोबुद्धिर्यो मद् भक्तः स मे प्रियः।।
'जो योगी निरंतर संतुष्ट हैं, मन-इन्द्रियों सहित शरीर को वश में किये हुए हैं और मुझ में दृढ़ निश्चयवाला है, वह मुझमें दृढ़ निश्चय वाला है, वह मुझमें अर्पण किये हुए मन-बुद्धिवाला मेरा भक्त मुझको प्रिय है।'
अनेक बार मौत क्यों होती है ? वासना से मौत होती है। वासना क्यों होती है ? वासना सुख के लिए होती है। अगर आत्मा-परमात्मा का सुख मिल गया तो वासना आत्मा-परमात्मा में लीन हो जायेगी। परमात्मा अमर है। वासना अगर परमात्म-सुख से तृप्त नहीं हुई तो देखने की वासना खाने की वासना, सूँघने की वासना, सुनने की वासना और स्पर्श की वासना बनी रहेगी। पाँच ही तो विषय हैं और जिनको पाँच विषय का सुख दिलाते हो उनको तो जला देना है।
योगी इस बात को जानते हैं इसलिए वे अंतर आराम, अंतर सुख, अंतर ज्योत की ओर जाते हैं। भोगी इस बात को नहीं जानता, नहीं मानता इसलिए बाहर भटकता है।
भगवान कहते हैं-
संतुष्टः सततं योगी यतात्मा दृढ़निश्चयः।
मय्यर्पितमनोबुद्धिर्यो मद् भक्तः स मे प्रियः।।
'जो योगी निरंतर संतुष्ट हैं, मन-इन्द्रियों सहित शरीर को वश में किये हुए हैं और मुझ में दृढ़ निश्चयवाला है, वह मुझमें दृढ़ निश्चय वाला है, वह मुझमें अर्पण किये हुए मन-बुद्धिवाला मेरा भक्त मुझको प्रिय है।'
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