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Friday, 16 September 2011

डाकू की कविता


एक कवि गरीबी से तंग आकर डाकू बन गया, 
 डकैती करने एक बैंक गया और बोला: 
अर्ज है
तकदीर में जो है वही मिलेगा,
हैंड्स अप कोई अपनी जगह से नहीं हिलेगा.


फिर कैशियर के पास गया और बोला:


कुछ ख्वाब मेरी आंखों से निकाल दो,
जो कुछ भी तुम्हारे पास है जल्दी से इस बैग में डाल दो.
बहुत कोशिश करता हूं तेरी याद भुलाने की,
कोई कोशिश नहीं करें पुलिस को बुलाने की.
भुला दे मुझको क्या जाता है तेरा,
मैं गोली मार दुंगा, जो किसी ने पीछा किया मेरा. 

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