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Friday 26 August, 2011

7 कामों से सदा दूर रहें ...वरना उठेंगे बुरे विचार


जीवन में कुछ भी अनावश्यक या नाजायज नहीं है। लेकिन कार्य का एक निश्चित समय, स्थान और अवसर होता है। समय, स्थान और अवसर को ध्यान में रख कर ही किसी बात को सही या गलत ठहराया जा सकता है।

कामवासना इंसान की एसी ही जन्मजात प्रवृत्ति है जो बेहद संवेदनशील, महत्वपूर्ण और मूल्यवान है, लेकिन गलत समय, स्थान और अवसर पर यदि यह प्रवृति हावी हो जाए जो व्यक्ति को गलत रास्ते पर धकेल कर खंडित चरित्र वाला इंसान बना सकती है।

कुछ प्रमुख कारण हैं जो कामवासना की इस शक्ति को गलत समय पर भड़का कर बड़ी मुसीबत खड़ी कर सकता है...



- स्त्रि/पुरुष के साथ एकांत में रहना, बातें करना या हंसी-ठिठोली करना,

- तामसी और राजसी भोजन करना,

- अश£ील साहित्य पढऩा,

- कामोत्तेजन दृश्यों को देखना,

- विषय भोग के विचार या कल्पनाएं करना,

- देर रात तक जागना,

- किसी भी प्रकार के नशे का सेवन करना,

क्या आप जानते हैं- इंसान का सबसे बड़ा शिक्षक कौन है?


दुखों की पाठशाला में पढ़ा-लिखा और पका व्यक्ति अनायास ही सर्वश्रेष्ठ बन जाता है। मनुष्य जितना सुविधाओं और सुख-साधनों में रहकर नहीं सीखता उससे अधिक कठिनाइयां और अभाव ही उसे तराशती और मांजती और सुयोग्य बनाती हैं। इस बात को और भी आसानी से समझने के लिये आइये चलते हैं महाभारत की एक रोचक घटना की ओर...

द्रोणाचार्य कौरव सेना के सेनापति बने। पहले दिन का युद्ध वे बड़े कोशल के साथ लड़े, फिर भी उस दिन की विजय अर्जुन के हाथ ही लगी। यह देखकर दुर्योधन बड़ा निराश हुआ। हताशा और क्रोध से भरी मन:स्थिति के साथ वह गुरु द्रोण के पास गया और बोला - गुरुदेव! अर्जुन तो आपका शिष्य है, आप तो उसे एक क्षण में परास्त कर सकते हैं। फिर ऐसा कैसे हुआ? द्रोणाचार्य गंभीर मुद्रा में बोले- तुम ठीक कहते हो पर एक तथ्य नहीं जानते। अर्जुन मेरा शिष्य अवश्य है, पर उसका सारा जीवन कठिनाइयों से सघंर्षो में, वनवास में, अज्ञातवास में बीता है। मैनें राजसी सुख में जीवन बिताया है। कुधान्य खाया है। विपत्ति ने ही उसे मुझसे भी अधिक योग्य बना दिया है।

सबक यह कि जीवन में आने वाली कठिनाइयों या मुसीबतों को तप या व्यायाम समझकर सदा हंसकर सामना करना चाहिये। ऐसा करने से व्यक्ति बेहद शक्तिशाली और अजैय यौद्धा बन जाता है। सुख नहीं दु:ख ही हमारा सबसे बड़ा शिक्षक है।

5 चीजें जिसके पास.. वही सबसे बड़ा सुखी


आजकल कहा जाता है कि पूर्ण सुखी इंसान को खोज पाना बड़ा मुश्किल काम है। कोई शरीर से स्वस्थ है तो गरीब है, किसी के पास पर्याप्त धन-सम्पत्ति है तो शरीर और परिवार का साथ नहीं है। कहने का मतलब यह कि हर व्यक्ति किसी न किसी परेशानी या अभाव से घिरा ही हुआ है। कहा जाता है कि कलयुग में वही इंसान सुखी है जिसके पास ये पांचों चीजें हैं:-



1. पर्याप्त धन- कहते हैं धन सबकुछ नहीं, लेकिन बहुत कुछ है क्योंकि जीवन में सम्मान और स्वाभिमान से जीने के लिये पग-पग पर धन की आवश्यकता पड़ती है।

2. स्वस्थ शरीर- सबकुछ हो और सेहत ठीक न हो तो सबकुछ बेकार लगने लगता है।



3. भरोसेमंद जीवन साथी- पति या पत्नी के रूप में सुख-दु:ख के साथी का विश्वसनीय होना भी जरूरी है।



4. आज्ञाकारी संतान- संतान आज्ञाकारी और सदाचारी हो तो गृहस्थ जीवन सार्थक हो जाता है।



5. समाज में प्रतिष्ठा- मेहनत, ईमानदारी तथा ओरों की मदद की भावना से अर्जित कीर्ति मन को सुकून देने वाली होती है।



उपरोक्त कसौटियों से यह पता चलता है कि इस संसार में वही व्यक्ति पूरी तरह से सुखी और सौभाग्यशाली माना जा सकता है जिसके पास ऊपर बताई हुई पांचों चीजों का साथ हो।

जीवनी शक्ति को खा जाने वाली 4 छोटी आदतों को तुरंत छोड़ दें....

मनुष्य जब बच्चे के रूप में पैदा होता है तो उसके पास अनेक प्रकार की शक्तियां, क्षमताएं और संभावनाएं होती हैं। इन सोई हुई गुप्त शक्तियों को जगाकर और निखारकर ही कोई व्यक्ति साधारण से महान बन जाता है। जबकि अधिकांश लोग अपनी इन शक्तियों और क्षमताओं को जाने-अनजाने ही बेकार के कार्यो में बर्बाद कर देते हैं।

आइये जानते हैं कि किन-किन गलत आदतों या कार्यों में हमारी जीवनी शक्ति व्यर्थ में नष्ट हो जाती है...

1. बगैर भूख के सिर्फ स्वाद को ध्यान में रखकर भोजन करने पर इंसान की बहुत सी जीवनी शक्ति उस अनावश्यक भोजन को पचाने और शरीर से बाहर फेंकने में बर्बाद हो जाती है।

2. बगैर जरूरत के व्यर्थ की बकवास यानी फालतू बोलते रहने से भी इंसान की कीमती जीवनी शक्ति बेकार में ही बर्बाद होती रहती है।

3. जीवन से जुड़े हुए महत्वपूर्ण विषयों को छोड़कर व्यर्थ की कल्पनाएं करना और खयाली पुलाव पकाते रहने में व्यक्ति की मानसिक जीवनी शक्ति अनावश्यक ही बर्बाद होती रहती है।

4. पांचों इन्द्रियों (देखना, सुनना, स्वाद चखना, स्पर्श का अनुभव व सुगंध सूघना) के भोग से मिलने वाले क्षणिक यानी थोड़े ही वक्त में मिट जाने वाले शारीरिक सुखों को मजा लूटने में इंसान की जीवनी शक्ति सबसे ज्यादा खर्च और बर्बाद होती रहती है।

मौत उम्र नहीं देखती... जब आना होता है आ ही जाती है


मनुष्य का पूरा जीवन एक पाठशाला है यहां हर वक्त किसी न किसी पहलु पर हमें कुछ न कुछ सीखने को जरूर मिलता है। जिदंगी का हर क्षण हमें कुछ न कुछ सीख जरूर देता है।

स्वामी रामतीर्थ जापान की यात्रा पर थे। जिस जहाज से वह जा रहे थे, उसमें नब्बे वर्ष के एक बुजुर्ग भी थे। स्वामी जी ने देखा कि वह एक पुस्तक खोल कर चीनी भाषा सीख रहे हैं। वह बार-बार पढ़ते और लिखते जाते थे। स्वामी जी सोचने लगे कि यह इस उम्र में चीनी सीख कर क्या करेंगे। एक दिन स्वामी जी ने उनसे पूछ ही लिया, 'क्षमा करना आप तो काफी वृद्ध और कमजोर हो गए हैं इस उम्र में यह कठिन भाषा कब तक सीख पाएंगे। अगर सीख भी लेंगे तो उसका उपयोग कब और कैसे करेंगे।

यह सुन कर उस वृद्ध ने पहले तो स्वामी जी को घूरा, फिर पूछा, 'आपकी उम्र कितनी है? स्वामी जी ने कहा, 'तीस वर्ष।बुजुर्ग मुस्कराए और बोले, 'मुझे अफसोस है कि इस उम्र में आप यात्रा के दौरान अपना कीमती समय बेकार कर रहे हैं। मैं आप लोगों की तरह नहीं सोचता। मैं जब तक जिंदा रहूंगा तब तक कुछ न कुछ सीखता रहूंगा। सीखने की कोई उम्र नहीं होती। यह नहीं सोचूंगा कि कब तक जिंदा रहूंगा, क्योंकि मृत्यु उम्र को नहीं देखती वह तो कभी भी आ सकती है। आपकी बात से आपकी सोच का पता चलता है। शायद इसी सोच के कारण आप का देश पिछड़ा है। स्वामी जी ने उससे माफी मांगते हुए कहा, 'आप ठीक कहते हैं। मैं जापान कुछ सीखने जा रहा था, लेकिन जीवन का बहुमूल्य पहला पाठ तो आप ने रास्ते में ही, एक क्षण में मुझे सिखा दिया।

जिस व्यक्ति में ये 3 गुण हों समझो वह होगा हेल्दी और मांइडेड


आयुर्वेद में एक बड़ी सुन्दर बात कहीं गई है कि यदि किसी को हमेशा स्वस्थ रहना हो तो उसे- हितभुक्, मितभुक् और ऋतभुक् होना चाहिये। यानी व्यक्ति को वही खाना चाहिये तो लाभदायक हो, उचित मात्रा में हो तथा मौसम और ऋतु के अनुसार सही हो।
हर कोई चाहता है कि वह स्वस्थ रहे, सुखी रहे और समाज में उसकी पहचान एक समझदार व्यक्ति की हो।

लेकिन मन की यह चाह हजारों-लाखों में से किसी एक की ही पूरी हो पाती है। किसी को धन की कमी खलती है, तो कोई मानसिक शांति के लिये तरसता रहता है। संयोग से अगर किसी के पास पर्याप्त धन-सम्पत्ति और सुख-सुविधाएं मौजद हों तो दुर्भाग्य से उसका स्वास्थ्य इस लायक नहीं होता कि वह जिंदगी में चैन की बंसी बजा सके। तो ऐसे में आखिर क्या किया जाए कि व्यक्ति सुखी और स्वस्थ तो हो ही पर साथ ही समझदार भी कहलाए।

प्राचीन धर्म शास्त्रों में दी हुई अमूल्य आध्यात्मिक शिक्षाओं में इस विषय में बड़ी ही मारके की बात कही गई है। इनमें कहा गया है कि इन तीन गुणों को अपनाकर कोई भी इंसान सुखी और स्वस्थ होने के साथ ही समझदार भी बन सकता है। ये तीन गुण कुछ इस प्रकार हैं...

1. कम खाना- यानी हमेशा भूख से थाड़ा कम भोजन करने वाला व्यक्ति सदा स्वस्थ रहता है।


2. गम खाना- यानी धैर्य रखना और अनिवार्य न होने तक गुस्से या किसी दूसरे आवेश को नियंत्रित रखना।


3. नम जाना- यानी उम्र में बड़े और खुद से अधिक योग्य चाहे वह उम्र और ओहदे में छोटा हो के सामने विनम्र व्यवहार करना।

प्रेमी या दोस्त...सच्चा है कि कच्चा...ऐसे पहचाने!


हमारे मन का स्वभाव ऐसा है कि वह मीठा बोलने वालों को ही ज्यादा पंसंद करता है। अच्छे-बुरे से मन को कुछ लेना-देना नहीं। असली दोस्त की पहचान में भी इसी कारण से इंसान से भूल हो जाती है। व्यक्ति मीठा बोलने वाले मनोरंजक व्यक्ति को ही अपना पक्का दोस्त समझ बैठते हैं, जबकि असलियत में ऐसा कुछ होता नहीं।


इस विषय में कबीरदास जी ने बहुत सही बात कही है-

''निंदक नियरे राखिये, आंगन कुटि छवाय।

बिन पानी बिन साबुने, निर्मल करे सुभाय।।''



इसीलिये कहते हैं सच्चा दोस्त उस निदंक की तरह होता है जो अच्छाईयों पर आपकी तारीफ तो करेगा ही लेकिन बगैर किसी लाग-लपेट के आपकी बुराईयों को उजागर करेगा और उनको दूर करने में आपकी मदद भी करता है।


ऐसा ही एक किस्सा है कृष्ण और अर्जुन की दोस्ती का द्वारिका में एक ब्राह्मण के घर जब भी कोई बालक जन्म लेता तो वह तुरंत मर जाता एक बार वह ब्राह्मण अपनी ये व्यथा लेकर कृष्ण के पास पहुंचा परन्तु कृष्ण ने उसे नियती का लिखा कहकर टाल दिया। उस समय वहां अर्जुन भी मौजूद थे।अर्जुन को अपनी शक्तियों पर बड़ा गर्व था।


अपने मित्र की मदद करने के लिए अर्जुन ने ब्राह्मण को कहा कि मैं तुम्हारे पुत्रों की रक्षा करूंगा। तुम इस बार अपनी पत्नी के प्रसव के समय मुझे बुला लेना ब्राह्मण ने ऐसा ही किया लेकिन यमदूत आए और ब्राह्मण के बच्चे को लेकर चले गए।


अर्जुन ने प्रण किया था कि अगर वह उसके बालकों को नहीं बचा पाएगा तो आत्मदाह कर लेगा। जब अर्जुन आत्म दाह करने के लिए तैयार हुए तभी श्री कृष्ण ने अर्जुन को रोकते हुए कहा कि यह सब तो उनकी माया थी उन्हें ये बताने के लिए कि कभी भी आदमी को अपनी ताकत पर गर्व नहीं करना चाहिए क्यों कि नियती से बड़ी कोई ताकत नहीं होती।


कृष्ण अर्जुन को अपना शिष्य ही नहीं बल्कि मित्र भी मानते थे। जब उन्हें इस बात का अहसास हुआ कि उनके मित्र अर्जुन के मन में अपनी शक्तियों और क्षमताओं को लेकर अहंकार पैदा हो गया है तो उन्हेंने जान बूझकर यह सारा खेल रचाया। ताकि अर्जुन को यह अहसास हो सके कि इंसान के हाथ में सब कुछ नहीं है।

ऐसा करके कृष्ण ने अर्जुन के प्रति अपनी मित्रता का फर्ज ही निभाया तथा अर्जुन को अहंकार से दूर किया।

आज से शुरु करें ये 3 काम, फटाफट बदल जाएगी किस्मत!

किश्मत, भाग्य, तकदीर, लक, प्रारब्ध, कर्मफल, योग, नियति...ये कुछ ऐसे बहुप्रचलित शब्द हैं जिनसे सभी परिचित हैं। कोई कितना भी मेहनती और सफल क्यों न हो जिंदगी में कभी न कभी ऐसे हालात अवश्य बन जाते हैं जब व्यक्ति को भाग्य और योग-संयोग की बातें सोचने और मानने पर मजबूर होना ही पड़ता है।

कहते हैं कि वैसे तो कर्मों के फल को कोई नहीं रोक सकता, वह हर हाल में भोगना ही पड़ता है। लेकिन हमेशा से ही कुछ बातें या कहें कि शक्तियां ऐसी अवश्य ही रही हैं जिनके बल पर अनहोनी या असंभव को भी संभव बनाया जा सकता है। ऐसा ही संयोग दुर्भाग्य को सौभाग्य में बदलने के विषय में होता है। आइये जाने उन अकाट्य और अजैय शाक्तियों को जो बुरी से बुरी किश्मत को भी सौभाग्य में बदलने की क्षमता रखती हैं...

1. बह्मुहूर्त में जागरण:

अभी तक आपका जो भी रुटीन रहा हो लेकिन कल से ही आप सूर्योदय से पहले हर हाल में बिस्तर छोड़ कर उठ जाएं। नित्य कर्मों से निपट कर साफ और सफेद रंग के वस्त्र पहनकर पूर्व दिशा की और मुंह करके बैठें और 15 से 20 मिनिट तक सुख-समृद्धि और प्रशन्नता का ध्यान करें।

2. कुंडलिनी शक्ति:

योग-अध्यात्म में कुंडलिनी शक्ति को हमारे शरीर में मेरूदंड में स्थित बताया जाता है। मेरुदंड के अंतर्गत ही ऐसे गुप्त शक्ति केन्द्र होते हैं जिन्हें जगाकर साधक का सारा दुर्भाग्य मिटाया जा सकता है।

एकाएक कुंडलिनी का जागरण कर पाना किसी के लिये भी संभव नहीं होता है, इसीलिये व्यक्ति को कल से इस बात की शुरुआत अवश्य कर देना चाहिये कि वह जब भी जंहा भी बैठे अपनी रीढ़ को यानी मेरुदंड को हर हाल में सीधा रखे। कमर झुकाकर बैठने से कुंडलिनी शक्ति कुंद होने लगती है, जिससे इंसान दुर्भाग्य से जल्दी प्रभावित हो जता है।

3. 324 बार गायत्री मंत्र का जप:

गायत्री मंत्र की शक्तियों से आज सारी दुनिया और विज्ञान जगज भी परिचित है। आध्यात्मिक शास्त्रों की यह निश्चित मान्यता है कि जो व्यक्ति प्रतिदिन सूर्योदय के समय निश्चित समय, निश्वित स्थान पर विशुद्ध आसन पर बैठकर 3-माला गायत्री का जब करता है उसके सारे बुरे प्रारब्ध कर्मफलों का नाश हाने लगता है। तथा पहले दिन से दुर्भाग्य सौभाग्य में परिवर्तित होने लगता है।

16 अद्भुत बातें, जो जिंदगी के हर मोड़ पर काम आएंगी!

वैसे तो अच्छी बातें, उपदेश या प्रवचन का नाम सुनते ही तथा कथित आधुनिक व्यक्ति नाक-मुंह सिकोडऩे लगता है, इससे यही जाहिर होता है कि उसकी इन सब बातों में कोई दिलचस्पी नहीं है, तथा इतना समय भी नहीं है।

बड़े बुर्जुगों और अनुभवियों का कहना है कि कुछ बातें पसंद न आने पर भी कर ही लेनी चाहिये-जैसे ठिठुरती ठंड में रजाई छोड़कर जल्दी उठ बैठना। यहां हम अनुभवों का निचोड़ कुछ ऐसी कीमती बातें दे रहे हैं जो जिंदगी को गहराई से जानने वाले ज्ञानियों ने नोट की हैं...

1. गुण - न हो तो रूप व्यर्थ है।

2. विनम्रता- न हो तो विद्या व्यर्थ है।

3. उपयोग- न आए तो धन व्यर्थ है।

4. साहस- न हो तो हथियार व्यर्थ है।

5. भूख- न हो तो भोजन व्यर्थ है।

6. होश- न हो तो जोश व्यर्थ है।

7. परोपकार- न करने वालों का जीवन व्यर्थ है।

8. गुस्सा- अक्ल को खा जाता है।

9. अहंकार- मन को खा जाता है।

10. चिंता- आयु को खा जाती है।

11. रिश्वत- इंसाफ को खा जाती है।

12. लालच- ईमान को खा जाता है।

13. दान- करने से दरिद्रता का अंत हो जाता है।

14. सुन्दरता- बगैर लज्जा के सुन्दरता व्यर्थ है।

15. दोस्त-चिढ़ता हुआ दोस्त मुस्कुराते हुए दुश्मन से अच्छा है।

16. सूरत- आदमी की कीमत उसकी सूरत से नहीं बल्कि सीरत यानी गुणों से लगानी चाहिये।

जीवन सरल बनाएं


आधुनिक जीवन अत्यधिक असंतोषजनक बनता जा रहा है। यह हमें प्रसन्नता नहीं प्रदान करता। इसमें बहुत सी जटिलताएं हैं, बहुत सी इच्छाएं हैं। हम अत्यधिक आवश्यकताओं से स्वयं को मुक्त करें और ईश्वर के साथ अधिक समय व्यतीत करें। अपने जीवन को सरल बनाएं। अपने अंतर में, अपनी आत्मा से प्रसन्न रहें। हम अपने बचे हुए समय को ध्यान में लगाएं, जो ईश-संपर्क प्रदान करता है तथा शांति एवं प्रसन्नता रूपी जीवन की वास्तविकताओंकी प्राप्ति में सच्ची प्रगति प्रदान करता है।

अपना जीवन सरल बनाएं और उतने में ही आनन्द लें जो हमें ईश्वर ने दिया है। अपना खाली समय स्वाध्याय में लगाएं। ईश्वर की मौन वाणी समस्त प्राणी-जगत का आधार है,धर्म-ग्रन्थों के माध्यम से और हमारे अंत:करण के माध्यम से सदा हमें पुकारती रहती है। चिरस्थायी आनंद प्राप्ति के लिए भौतिक धन-संपदा पर विश्वास करना उचित नहीं है। सरल जीवन के द्वारा हमें सर्वसंतुष्टिदायकप्रसन्नता प्राप्त होती है। सादगी का अर्थ है इच्छाओं और आसक्तियोंसे मुक्त रहना और आंतरिक रूप से परमानन्द में मग्न रहना। सरलता से जीवनयापन करने के लिए हमें प्रबल मन और अदम्य इच्छाशक्ति की आवश्यकता होती है। इसका अर्थ यह नहीं कि हम अभाव में रहें, बल्कि हम उसी के लिए प्रयास करें और उसी में संतोष करें जिस चीज की हमें वास्तव में आवश्यकता है। जब हमारी अंतरात्मा मानसिक रूप से सांसारिक वस्तुओं का परित्याग कर देती है, तो हमें स्थायी रूप से संतुष्टि करने वाले आनंद की प्राप्ति होने लगती है। जब हम ईश्वर की इच्छा के अनुसार अपने कर्मो का चयन करते हैं, तो जीवन सरल हो जाता है। यदि हम अपना मन निर्मल रखें, तो हम सदा ईश्वर को अपने साथ पाएंगे। हम अपने प्रत्येक विचार में उनकी झलक देखेंगे। एक निर्मल हृदय निर्मल विचारों का परिणाम होता है। हम स्वयं एक छोटे बच्चे के समान सरल बनकर,आसक्ति रहित,सच्चा एवं भोला बनकर ब्रह्म चैतन्य प्राप्त करने की चेष्टा करके उस दिव्य अवस्था को प्राप्त कर सकते हैं। भक्त अंत: प्रज्ञा से परिपूर्ण हो जाता है जो शिशु समान निष्कपट होता है, संशय रहित होता है, सत्यनिष्ठा से पूर्ण होता है तथा विनम्र एवं ग्रहणशील होता है। ऐसा भक्त ईश्वर को प्राप्त करता है।

रावण होने का दर्द !

रावण में कुछ अवगुण जरूर थे, लेकिन उसमें कई गुण भी मौजूद थे, जिन्हें कोई भी व्यक्ति अपने जीवन में उतार सकता है। यदि हम रामायण के प्रसंगों को बारीकी से पढें, तो रावण न केवल महाबलशाली था, बल्कि बुद्धिमान भी था। फिर उसे सम्मान क्यों नहीं दिया जाता? कहा जाता है कि वह अहंकारी था।

लेकिन यहां एक प्रश्न यह भी उठता है कि क्या हमारे कुछ देवी-देवता अहंकारी नहीं रहे हैं? जहां तक सवाल सीता-हरण का है तो इस घटना के पीछे रावण की बहन शूर्पणखाका हाथ था, जिससे रावण बेहद प्यार करता था। शूर्पणखाके उकसाने पर ही उसने सीता का हरण किया था। जहां तक स्त्रियों के प्रति रावण के आकर्षण की बात है तो कई ऐसी धार्मिक कथाएं हैं, जिनमें स्त्रियों पर देवताओं के मोहित होने की चर्चा है। मान्यता है कि इंद्र देवताओं के राजा हैं, लेकिन इंद्र का दरबार अप्सराओं से सजा रहता था। ज्ञानी और समाजसुधारक जनमानस में रावण की छवि एक खलनायक या बुरे इंसान की बनी हुई है, जबकि वह तपस्वी भी था। रावण ने कठोर तपस्या के बल पर ही दस सिर पाए थे। इंसान के मस्तिष्क में बुद्धि और ज्ञान का अथाह भंडार होता है।

इसके बल पर यदि वह चाहे, तो कुछ भी हासिल कर सकता है। रावण के तो दस सिर यानी दस मस्तिष्क थे। इसी से अंदाज लगाया जा सकता है कि वह कितना ज्ञानी रहा होगा। लेकिन, रावण की गाथाओं को और उसके दूसरे पहलू पर ध्यान नहीं दिया गया और रावण एक अहंकारी खलनायक बनकर रह गया। यदि हम अलग-अलग स्थान पर प्रचलित राम कथाओं को जानें, तो रावण को बुरा व्यक्ति नहीं कहा जा सकता है। जैन धर्म के कुछ ग्रंथों में रावण को प्रतिनारायण कहा गया है।

रावण समाज सुधारक और प्रकांड पंडित था। तमिल रामायणकारकंब ने उसे सद्चरित्र कहा है। रावण ने सीता के शरीर का स्पर्श तक नहीं किया, बल्कि उनका अपहरण करते हुए वह उस भूखंड को ही उखाड लाता है, जिस पर सीता खडी हैं। गोस्वामी तुलसीदास ने भी कहा है कि रावण जब सीता का अपहरण करने आया, तो वह पहले उनकी वंदना करता है।

मन मांहिचरण बंदिसुख माना।

महर्षि याज्ञवल्क्यने इस वंदना को विस्तारपूर्वक बताया है। मां तू केवल राम की पत्नी नहीं, बल्कि जगत जननी है। राम और रावण दोनों तेरी संतान के समान हैं। माता योग्य संतानों की चिंता नहीं करती, बल्कि वह अयोग्य संतानों की चिंता करती है। राम योग्य पुरुष हैं, जबकि मैं सर्वथा अयोग्य हूं, इसलिए मेरा उद्धार करो मां। यह तभी संभव है, जब तू मेरे साथ चलेगी और ममतामयीसीता उसके साथ चल पडी। ज्योतिष और आयुर्वेद का ज्ञाता लंकापति रावण तंत्र-मंत्र, सिद्धि और दूसरी कई गूढ विद्याओं का भी ज्ञाता था। ज्योतिष विद्या के अलावा, उसे रसायन शास्त्र का भी ज्ञान प्राप्त था। उसे कई अचूक शक्तियां हासिल थीं, जिनके बल पर उसने अनेक चमत्कारिककार्य संपन्न किए। रावण संहिता में उसके दुर्लभ ज्ञान के बारे में विस्तार से वर्णन किया गया है। वह राक्षस कुल का होते हुए भी भगवान शंकर का उपासक था। उसने लंका में छह करोड से भी अधिक शिवलिंगोंकी स्थापना करवाई थी।

यही नहीं, रावण एक महान कवि भी था। उसने शिव ताण्डव स्त्रोत्मकी। उसने इसकी स्तुति कर शिव भगवान को प्रसन्न भी किया। रावण वेदों का भी ज्ञाता था। उनकी ऋचाओंपर अनुसंधान कर विज्ञान के अनेक क्षेत्रों में उल्लेखनीय सफलता अर्जित की। वह आयुर्वेद के बारे में भी जानकारी रखता था। वह कई जडी-बूटियों का प्रयोग औषधि के रूप में करता था। रावण ने राम को राम बनाया यदि रामायण या राम के जीवन से रावण के चरित्र को निकाल दिया जाए, तो सोचिए कि संपूर्ण रामकथा का अर्थ ही बदल जाएगा। स्वयं राम ने रावण के बुद्धि और बल की प्रशंसा की है। इसलिए जब रावण मृत्यु-शैय्या पर था, तब राम ने लक्ष्मण को रावण से सीख लेने के लिए कहा। उन्होंने आदेश दिया कि वह रावण के चरणों में बैठकर सीख ले। उधर युद्ध में मूचिर््छतलक्ष्मण को देख कर रावण ने चिकित्सक को बुलाने की अनुमति देते हुए कहा था, जहां एक ओर मृतक हमसे सम्मान और अंत्येष्टि, वहीं दूसरी ओर घायल योद्धा सहानुभूति और सेवा पाने के अधिकारी हैं। पूजा जाता है रावण महाराष्ट्र के अमरावती और गढचिरौलीजिले में कोरकू और गोंड आदिवासी रावण और उसके पुत्र मेघनाद को अपना देवता मानते हैं। अपने एक खास पर्व फागुन के अवसर पर वे इसकी विशेष पूजा करते हैं। इसके अलावा, दक्षिण भारत के कई शहरों और गांवों में भी रावण की पूजा होती है।

Thursday 25 August, 2011

जन जोश की आंधी बहती है


एक चिंगारी जो दबी हुई थी
आज भड़क फिर बैठी है ,
अन्ना अब जुटे रहो
आज भारत की जनता ये कहती ह
जो तंग आ चुकी जंगल राज से
हक़ ले दो हमें ये कहती है
न जाने अंत अब होगा क्या ?
धर्मयुद्ध फिर है , आरम्भ हुआ ,
अन्ना देखो जम के खड़ा ,
उसके पीछे पीछे देखो


जन जोश की आंधी बहती है
अब तो होके रहेगा विश्व का
लोकतंत्र फिर से बहाल
क्युकी ये वो जनता ह
जो हर दिन भ्रष्टाचार सहती है

Sunday 21 August, 2011

वाह रे कांग्रेस

Wah re congress
kay re tera khel........!!!
Wah re congress
kay re tera khel........!!!
KASAB ko biryani aur
ANNA ko jail,,,,,,,,,,,,,,,!!!!!
दर्द होता रहा छटपटाते रहे, आईने॒ से सदा चोट खाते रहे, वो वतन बेचकर मुस्कुराते रहे
हम वतन के लिए॒सिर कटाते रहे”
280 लाख करोड़ का सवाल है ...
भारतीय गरीब है लेकिन भारत देश कभी गरीब नहीं रहा"*ये कहना है स्विस बैंक के डाइरेक्टर का. स्विस बैंक के डाइरेक्टर ने यह भी कहा है कि भारत का लगभग 280लाख करोड़ रुपये उनके स्विस बैंक में जमा है. ये रकम इतनी है कि भारत का आने वाले 30 सालों का बजट बिना टैक्स के बनाया जा सकता है.
या यूँ कहें कि 60 करोड़ रोजगार के अवसर दिए जा सकते है. या यूँ भी कह सकते है कि भारत के किसी भी गाँव से दिल्ली तक 4 लेन रोड बनाया जा सकता है.
ऐसा भी कह सकते है कि 500 से ज्यादा सामाजिक प्रोजेक्ट पूर्ण किये जा सकते है. ये रकम इतनी ज्यादा है कि अगर हर भारतीय को 2000 रुपये हर महीने भी दिए जाये तो 60साल तक ख़त्म ना हो. यानी भारत को किसी वर्ल्ड बैंक से लोन लेने कि कोई जरुरत नहीं है. जरा सोचिये ... हमारे भ्रष्ट राजनेताओं और नोकरशाहों ने कैसे देश को
लूटा है और ये लूट का सिलसिला अभी तक 2011 तक जारी है.
इस सिलसिले को अब रोकना बहुत ज्यादा जरूरी हो गया है. अंग्रेजो ने हमारे भारत पर करीब 200 सालो तक राज करके करीब 1 लाख करोड़ रुपये लूटा.
मगर आजादी के केवल 64 सालों में हमारे भ्रस्टाचार ने 280लाख करोड़ लूटा है. एक तरफ 200 साल में 1 लाख करोड़ है और दूसरी तरफ केवल 64 सालों में 280 लाख करोड़ है.यानि हर साल लगभग 4.37 लाख करोड़, या हर महीने करीब 36 हजार करोड़ भारतीय मुद्रा स्विस बैंक में इन भ्रष्ट लोगों द्वारा जमा करवाई गई है.
भारत को किसी वर्ल्ड बैंक के लोन की कोई दरकार नहीं है. सोचो की कितना पैसा हमारे भ्रष्ट राजनेताओं और उच्च अधिकारीयों ने ब्लाक करके रखा हुआ है.
हमे भ्रस्ट राजनेताओं और भ्रष्ट अधिकारीयों के खिलाफ जाने का पूर्ण अधिकार है.हाल ही में हुवे घोटालों का आप सभी को पता ही है - CWG घोटाला, २ जी स्पेक्ट्रुम घोटाला, आदर्श होउसिंग घोटाला ... और ना जाने कौन कौन से घोटाले अभी उजागर होने वाले है ........
आप लोग जोक्स फॉरवर्ड करते ही हो.
इसे भी इतना फॉरवर्ड करो की पूरा भारत इसे पढ़े ...
और एक आन्दोलन बन जाये