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Monday 21 May, 2012

कविता के बीज


आओ खोजते है ...
कविता के बीज 

ख़ुशी के अश्क 
या फिर गरीब के आँखों में खून 
आदमी से आदमी  के लड़ने का जूनून 
खोजिये 
यही कही पर मिल जायेंगे 
कविता के बीज//

धर्म बदलने की दुकान पर जाए 
कसम खाकर पलट जाने वालों के आँखों में झांके 
सिंदूर लगे पत्थर में खोजें 
मिल जायेगे 
कविता के बीज //

सास-बहु की खटपट में खोजे
देवर-भाभी के चुम्बन में खोजे 
नेताओ के चाल-चलन में खोजें 
मिल जायेंगे 
कविता के बीज //

यमदुत

एक आदमी मर गया और सीधा नरक में पहुंचा। वहां यमदूत ने उसका स्वागत किया और उसे नरक की सैर कराई। यमदूत ने कहा कि यहां तीन तरह के नरक-कक्ष है और उसे अपनी पसन्द का कक्ष चुनने की आजादी है।

पहला कक्ष आग की लपटों और गर्म हवाओं से इस कदर भरा हुआ था कि वहां सांस लेना भी दूभर था। आदमी ने कहा कि वह इस नरक में रहना नहीं चाहेगा।

यमदूत उसे दूसरे नरक कक्ष में ले गया। यह कक्ष सैंकड़ों आदमियों से भरा हुआ था और यमदूत बेरहमी से उनकी पिटाई कर रहे थे। चारों ओर चीखपुकार का माहौल था। आदमी यह सब देखकर घबरा गया और उसने यमदूत से अगला कक्ष दिखाने की प्रार्थना की।

तीसरा और अंतिम कक्ष ऐसे लोगों से भरा हुआ था जो बस आराम कर रहे थे और कॉफी पी रहे थे। यहां अन्य दो कक्षों जैसी कष्टदायक कोई बात उसे नहीं दिखी। उसने यमदूत से कहा कि वह इसी कक्ष में रहना चाहता है। यमदूत ने उसे उसी कक्ष में छोड़ा और चला गया। आदमी ने एक कॉफी ली और आराम से एक तरफ बैठ गया। कुछ मिनटों बाद लाउडस्पीकर पर एक आवाज गूंजी-

ब्रेक टाइम खत्म हुआ। अब फिर से दस हजार घूंसे खाने के लिये तैयार हो जाओ!

पहचान


एक औरत है 
जिसके 
हाथों की अकडन 
घुटनों का दर्द 
और चहरे की झुरिय्याँ 
 बढ़ जाती है , साल-दर-साल 
समतल जमीन पर 
उसके चलने का ढंग 
मानो पहाड़ चढ़ती महिला 
एक लाठी के संग //

पहचाना आपने 
वह मेरी माँ है /

संतोषम परम सुखम

 
देख तुम्हारी भरी जवानी , मैं क्यों बहकूँ
हो फूल भवरे की तुम , फिर मैं क्यों चहकूं //

खुश हूँ अपने घर में ,माता-पिता के संग
देख तुम्हारी महल अटारी , मैं क्यों तरसूं //

मेहनत की सूखी रोटी , लगती है मीठी
देख तुम्हारा हलवा-पुआ , मैं क्यों तडपूं //

हर आंसू में तुम बसते हो , ऐसा मैंने पाया
मंदिर में तुम्हें खोजने , फिर मैं क्यों भटकूँ //