About Me

इस साईट में शामिल हो

Monday 21 May, 2012

संतोषम परम सुखम

 
देख तुम्हारी भरी जवानी , मैं क्यों बहकूँ
हो फूल भवरे की तुम , फिर मैं क्यों चहकूं //

खुश हूँ अपने घर में ,माता-पिता के संग
देख तुम्हारी महल अटारी , मैं क्यों तरसूं //

मेहनत की सूखी रोटी , लगती है मीठी
देख तुम्हारा हलवा-पुआ , मैं क्यों तडपूं //

हर आंसू में तुम बसते हो , ऐसा मैंने पाया
मंदिर में तुम्हें खोजने , फिर मैं क्यों भटकूँ //

No comments:

Post a Comment